चल मन आज आसमान से बातें करते हैं ,
पूछा ,”तुम इतने ऊँचे और विस्तृत कैसे हो ?”
तो बोला , “ख़ाली हो जाओ तो हल्के होकर
अपने आप ऊपर उठ जाओगे और मेरी तरह
फैल जाओगे, फिर कभी सूरज के प्रकाश से
रौशनी फैलाते नज़र आओगे तो कभी चाँद -
सितारों से जड़ित चादर जैसे झिलमिलाओगे,
कभी हिमकणो से भरे सफ़ेद बादल से और
कभी पानी की बूँदों से भरपूर
काले बादल से ढक जाओगे ,
बरस जाने के बाद नज़र आओगे -
सुंदर पावन नीला अम्बर ,
जो असल में है बस ख़ालीपन,
मेरा मन हो या तेरा मन ,
हम सब में है कोई बहरुपिया
जो अजब तमाशा दिखा रहा है ,
अलग-अलग से रूप रंग में
सृष्टि की लीला चला रहा है …
सूरज का है प्रकाश वही ,
आकाश का है विस्तार वही,
सागर की वह गहराई है ,
जीवन की वही सच्चाई है ,
लुका -छिपी के खेल खेल में
सत्य के भेद बताता है ,
और सत्य की ही राह से वह
सत्य तक पहुँचाता है ….!”
- @Sudesh Prakash
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